युवा उत्तराखंड अब सवाल पूछने लगा है कि मेरी मिट्टी से जन्मे पहाड़ और उन पहाड़ी लोगों का अभी तक क्यों उधान नहीं हुआ जिनके लिए उन्होंने अलग राज्य की मांग की थी आखिर राज्य की स्थापना के समय उत्तराखंड के लिए जो सपने देखकर जिन लोगों ने महान संघर्ष करें और अपने प्राणों की आहुति दी, यातनाएं सही, जेल गए, लाठी खाई। वो सपने, वो पहाड़ और पहाड़ियों का दर्द आज भी उसी प्रकार है।
हाल ये है आज इन लोगों का ऐसा नेटवर्क बना कि सब मिल बांट कर मलाई खाने लगे और संसाधनों की खुली लूट करने लगे।
इन सबके बीच आमजन फिर से सिस्टम से त्रस्त है हाल ये है कि रसूखदारों, अफसरों और नेताओं की मौज हो रही है और अब उत्तराखंड का एक एक आदमी इस सवाल को पूछता है कि आखिर 22 सालों में क्या बदला!
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स्वास्थ्य सेवाओं का हाल यह है कि आज भी बच्चे सड़क पर जन्म ले रहे है। शिक्षा की हालत बेहाल है, युवा बेरोजगार है, पलायन की समस्या मुंह पसारे खड़ी है। और तो और नशे का आगोश भी पहाड़ों तक स्मैक पहुंचा रहा है।
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अब यह नशा ‘युवा’ उत्तराखंड के युवाओं को अपने अपने आगोश में लेकर तेजी से खोखला करते जा रहा है लेकिन सब चुप चाप सिर्फ तमाशा देख कर अपनी जेब गरम रहे हैं।
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