प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लालकिले से अपने भाषण की शुरुआत में देश की आजादी लिए संघर्ष के नायकों को याद किया। 76वें स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री ने आने वाले 25 सालों में भारत को विकसित बनाने के लिए 5 संकल्पों यानी पंच प्रण की बात कही। नारी शक्ति को याद किया। भ्रष्टाचार और परिवारवाद पर तीखा चोट किया। उनका भाषण 83 मिनट का रहा। यहां पढ़िएं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता आंदोलन के नायकों को नमन किया। महान वीरों, वीरांगनाओं के शौर्य को याद किया। वीर सावरकर, नेताजी सुभाष चंद्र बोष, पंडित नेहरू, भगवान बिरसा मुंडा समेत आजादी के नायकों को याद किया। उन्होंने कहा कि अमृत महोत्सव में देशवासियों ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया। आजाद हिंदुस्तान के इतिहास में इतने व्यापक पैमाने पर किसी मुहिम में देशवासियों ने शायद हिस्सा नहीं लिया था।
भारत की विविधता ही इसकी ताकत
कल 14 अगस्त को भारत ने विभाजन विभिषिका स्मृति दिवस को भी भारी मन से मनाया। आजादी के समय तमाम आशंकाएं जताई गई कि भारत टूट जाएगा, बिखर जाएगा लेकिन सभी आशंकाएं निर्मूल साबित हुए। आजादी के बाद हमने क्या नहीं झेले। अकाल झेला, युद्ध झेला। सफलता-असफलता, आशा-निराशा न जाने कितने पड़ाव आए लेकिन इसके बावजूद भारत बढ़ता रहा। भारत की विविधता जो दूसरों को बोझ लगती थी वही उसकी ताकत है।
2014 में देशवासियों ने मुझे दायित्व दिया। आजादी के बाद जन्मा हुआ मैं पहला व्यक्ति था जिसे लालकिले से देशवासियों का गौरवगान करने का अवसर मिला था। लेकिन मेरे दिल में, जो भी आपलोगों से सीखा हूं, जितना आपलोगों को जान पाया हूं, सुख-दुख को समझ पाया हूं, उसको लेकर मैंने अपना पूरा कालखंड देश के लोगों को सशक्त बनाने में खपाया। चाहे वे दलित हों, शोषित हों, वंचित हों, महिला हों, कोई भी कोना हो…हर कोने में महात्मा गांधी के सपनों के लिए समर्पित किया।
भारत का जनमन आकांक्षी है, बहुत इंतजार किया लेकिन अब इंतजार के मूड में नहीं
देशवासियों, मैं आज देश का सबसे बड़ा सौभाग्य देख रहा हूं कि भारत का जनमन आकांक्षी जनमन है। हमें गर्व है कि आज हिंदुस्तान के हर कोने में, हर वर्ग में, हर तबके में आकांक्षाएं ऊफान पर है। देश का हर नागरिक चीजें बदलना चाहता है, बदलते देखना चाहता है लेकिन इंतजार करने के मूड में नहीं है। अपनी आंखों के सामने बदलते देखना चाहता है। कुछ लोगों को इसके कारण संकट हो सकता है क्योंकि जब समाज आकांक्षी होता है तो सरकारों को भी समय के साथ दौड़ना पड़ता है। हमारे आकांक्षी समाज ने बहुत इंतजार किया लेकिन अब वह आने वाली पीढ़ी के लिए इंतजार के मूड में नहीं है।
भारत की तरफ देखने का दुनिया का नजरिया बदला
भारत में सामूहिक चेतना का पुनर्जागरण हुआ है। आजादी के इतने दशकों के बाद पूरे विश्व का भारत की तरफ देखने का नजरिया बदल गया है। विश्व भारत की तरफ गर्व से देख रहा है, अपेक्षा से देख रहा है। दुनिया समस्याओं का समाधान भारत की धरती पर देखना चाहती है। विश्व उम्मीदें लेकर जी रहा है। उसे दिखने लगा है कि उम्मीदें पूरे होने का सामर्थ्य कहा है। 130 करोड़ देशवासियों ने कई दशकों के अनुभव के बाद स्थिर सरकार का महत्व क्या होता है, नीतियों में कैसा सामर्थ्य हो सकता है, ये अनुभव किया है। नीतियों में गतिशीलता हो, निर्णयों में तेजी हो तो विकास में हर कोई भागीदार बन जाता है। हम सबका साथ, सबका विकास का मंत्र लेकर चले थे लेकिन देशवासियों ने इसमें सबका विश्वास का रंग भरा है। लगता है कि आने वाले 25 साल में हमें पंच प्राण पर अपने संकल्पों और सामर्थ्य को केंद्रित करना होगा।
पहला प्रण- अब देश बड़े संकल्प लेकर ही चलेगा। बहुत बड़े संकल्प लेकर चलना होगा। यह संकल्प है- विकसित भारत।
दूसरा प्रण– किसी भी कोने में गुलामी का एक भी अंश अगर अब भी है तो उसे किसी भी हालत में बचने नहीं देना है। अब शतप्रतिशत सैकड़ों सालों की गुलामी ने हमारे मनोभावों को जकड़ कर रखा है। हमें गुलामी की छोटी से छोटी चीज से मुक्ति पानी ही होगी।
तीसरा प्रण– हमें हमारी विरासत पर गर्व होना चाहिए। क्योंकि यही विरासत है जिसने कभी भारत को स्वर्णिम काल दिया था। इस विरासत के प्रति हमें गर्व होना चाहिए।
चौथा प्रण– यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है। वह है एकता और एकजुटता। 130 करोड़ देशवासियों में एकता। एकता की ताकत एक भारत श्रेष्ठ भारत के सपनों के लिए है।
पांचवां प्रण– नागरिकों का कर्तव्य। इसमें पीएम भी बाहर नहीं होता, सीएम भी बाहर नहीं होता क्योंकि वह भी नागरिक हैं।
जब सपने बड़े होते हैं, संकल्प बड़े होते हैं तो पुरुषार्थ भी बहुत बड़ा होता है। अब कोई कल्पना कर सकता है कि देश 40-42 के कालखंड में कैसे उठ खड़ा हुआ था। संकल्प बड़ा था- आजादी। ताकत देखिए, बड़ा संकल्प बड़ा था तो हम आजादी लेकर रहे। अगर संकल्प छोटा होता तो शायद आज भी संघर्ष का दिन होता। आज अमृतकाल का पहला प्रभात है तो हमें इन 25 सालों में विकसित भारत बनाना ही होगा। बड़ा संकल्प है। हमारा देश विकसित देश होगा। विकास के हर पैमाने के केंद्र में मानव होगा, उसकी आशा-आकांक्षा होगा। भारत जब बड़ा संकल्प करता है तो करके दिखता है। स्वच्छता के संकल्प को देश ने करके दिखाया है। वैक्सीनेशन का लक्ष्य प्राप्त कर लिया। 200 करोड़ डोज लगा लिए। हमने तय कर लिया था कि 10 प्रतिशत एथनॉल मिलाएंगे तेल में लेकिन इसे पूरा कर लिया। ढाई करोड़ लोगों को बिजली कनेक्शन देना बड़ा संकल्प था लेकिन करके दिखाया। खुले में शौच से मुक्ति भारत में आज संभव हो पाया है। अनुभव कहता है कि एक बार हम सब संकल्प लेकर चल पड़ें तो हम निर्धारित लक्ष्यों को पार कर सकते हैं। अब आने वाले 25 साल बड़े संकल्प के होंगे। यही हमारा प्राण और यही हमारा प्रण भी होना चाहिए।
मन के किसी भी कोने में गुलामी का तत्व न बचे, आत्मनिर्भरता
हमें औरों की तरह देखने की जरूरत नहीं है। हमें गुलामी से मुक्ति चाहिए। हमारे मन के भीतर गुलामी का तत्व नहीं बचना चाहिए। जिस प्रकार से राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनी है, जिस आशा के साथ बनी है, और भारत की धरती से जुड़ी हुई शिक्षा नीति बनी है…यह ऐसा सामर्थ्य है जो हमें गुलामी के तत्वों से मुक्ति देती है। हमें हमारे देश की हर भाषा पर गर्व होना चाहिए। हमें वह भाषा आती हो या नहीं, लेकिन हमारे पूर्वजों की भाषा है, हमें गर्व होना चाहिए।
तीसरी प्राणशक्ति ये है कि हमें अपनी विरासत पर गर्व होनी चाहिए। जब हम अपनी धरती से जुड़ेंगे, तभी तो ऊंचा उड़ेंगे। हमारी ताकत देखिए, हम वो लोग हैं जो प्रकृति के साथ जीना जानते हैं, प्रेम करना जानते हैं। हमारे पास विरासत है ग्लोबल वॉर्मिंग की समस्या का समाधान देने वाला। हमारा बड़ा धान, मिलेट, मोटा धान हमारी विरासत है। आज दुनिया अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिलेट इयर बनाने के लिए आगे बढ़ रही है। जब व्यक्तिगत तनाव की बात होती है तो दुनिया को योग दिखता है, सामूहिक तनाव दिखता है तो भारत का परिवार दिखता है। हम वो लोग हैं जो जीवों में भी शिव देखते हैं, नारी को नारायणी कहते हैं, हम नदी को मां देखते हैं, हम कंकड़ में शंकर देखते हैं। ये हमारी विरासत है। हमने दुनिया को वसुधैव कुटुंबकम का मंत्र दिया। हम एकं सत्य बहुधा बदंति का मंत्र देते हैं। यत्र पिंडे तत्र ब्रह्मांडे कहने वाले लोग हैं। हम जनकल्याण से जगकल्याण के राही रहे हैं। हम सबके सुख और आरोग्य की बात करते हैं। इसलिए हमें अपनी विरासत पर गर्व करना सीखना चाहिए।
एक और महत्वपूर्ण विषय है- एकता, एकजुटता। इतने बड़े देश की विविधता को हमें सेलिब्रेट करना होगा। कोई नीचा नहीं है, कोई ऊंचा नहीं है, सब बराबर है। कोई अपना नहीं, कोई पराया नहीं। अगर बेटे-बेटी एक समान न हो तो एकता नहीं हो सकती। लैंगिक समानता एकता की बुनियाद है। हमें एकता से बांधने का मंत्र हैं इंडिया फर्स्ट। हमें ऊंच-नीच और मेरे-तेरे के भेदभाव को खत्म करना होगा।
नागरिक कर्तव्य पर जोर
किसी न किसी कारण से हमारे अंदर एक विकृति आई है। बोलचाल में, व्यवहार में। क्या हम स्वभाव से, संस्कार से, रोजमर्रा की जिंदगी में नारी को अपमानित करने वाली हर बात से मुक्ति का संकल्प ले सकते हैं? मेरे प्यारे देशवासियों मैं पांचवीं प्राणशक्ति की बात कर रहा हूं यानी नागरिक के कर्तव्य की। हमें कर्तव्य पर बल देना ही होगा। ये शासन का काम है कि बिजली 24 घंटे देने का प्रयास करे लेकिन ये नागरिक का कर्तव्य है कि ज्यादा से ज्यादा यूनिट बिजली बचे। केमेकल मुक्त खेती, ऑर्गनिक फार्मिंग हमारा कर्तव्य है। नागरिक कर्तव्य से कोई अछूता नहीं रह सकता।
आज महर्षि अरविंदो की जन्म जयंती भी है। स्वदेशी से स्वराज, स्वराज से सुराज ये उनका मंत्र है। हमें सोचना होगा कि हम कब तक दुनिया के और लोगों पर निर्भर रहेंगे। क्या हमारे देश को अन्न की जरूरत हो तो उसे आउटसोर्स कर सकते हैं क्या? इसलिए आत्मनिर्भर भारत हर नागरिक, हर सरकार, समाज की हर ईकाई का कर्तव्य बन जाता है।
मेरे साथियो, आज जब ये बात मैंने सुनी कि आजादी के 75 साल बाद जिस आवाज को सुनने के लिए हमारे कान तरस गए थे, 75 साल बाद लाल किले से तिरंगे को सलामी देने का काम मेड इन इंडिया तोप ने किया है। इसलिए मैं आज अपने देश की सेना के जवानों का हृदय से अभिनंदन करना चाहता हूं। आत्मनिर्भर भारत के भाव को सेना ने जिस तरह से उठाया है, उसे सलाम करता हूं। रक्षा से जुड़े 300 सामानों को हम बाहर से नहीं मंगाएंगे।
छोटे-छोटे बालकों, 5 साल, 7 साल के बालकों को भी मैं सलाम करना चाहता हूं। 5-5, 7-7 साल के बच्चे कह रहे हैं कि अब हम विदेशी खिलौनों से नहीं खेलेंगे। यह जब संकल्प होता है न, तब आत्मनिर्भर भारत उसकी रगों में दौड़ता है। भारत मैन्युफैक्चरिंग हब बनता जा रहा है, आत्मनिर्भर भारत का बुनियाद बना रहा है। आज इलेक्ट्रॉनिक गुड्स मैन्युफैक्चरिंग हो, मोबाइल फोन मैन्युफैक्चरिंग हो, हमारा देश बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है। जब हमारा ब्रह्मोस दुनिया में जाता है तो कौन हिंदुस्तानी होगा जिसका मन आसमान को नहीं छूता होगा। आज हमारे मेट्रो कोचेज, वंदेभारत एक्सप्रेस दुनिया के लिए आकर्षण का केंद्र बनता जा रहा है। हमें आत्मनिर्भर बनना है एनर्जी सेक्टर में। हम कबतक एनर्जी सेक्टर में किसी और पर निर्भर रहेंगे? सोलर का क्षेत्र हो, विंड एनर्जी का क्षेत्र हो, मिशन हाइड्रोजन हो, बायो फ्यूल या इलेक्ट्रिक वीइकल पर जाने की बात हो तो हमें आत्मनिर्भर बनना होगा। आज प्राकृतिक खेती भी आत्मनिर्भरता का मार्ग है। केमिकल फ्री खेती आत्मनिर्भरता को ताकत दे सकती है। भारत ने नीतियों के द्वारा स्पेस को खोल दिया है। हमने देश के नौजवानों के लिए नए द्वार खोल दिए हैं। मैं प्राइवेट सेक्टर का भी आह्वान करता हूं कि हमें दुनिया में छा जाना है। हमें स्वदेशी पर गर्व करना होगा।
हम बार-बार लाल बहादुर शास्त्री जी को याद करते हैं। जय जवान, जय किसान का नारा दिया था। अटल बिहारी वाजपेयी जी ने जय विज्ञान कहकरके उसमें एक कड़ी जोड़ दी थी। अब एक और अनिवार्यता है। वह है जय अनुसंधान। मुझे युवा पीढ़ी पर भरोसा है। इनोवेशन की ताकत देखिए कि हमारा यूपीआई डिजिटल ट्रांजैक्शन को ताकत दी है। अब हम 5 जी के दौर की तरफ कदम रख रहे हैं। हम ऑप्टिकल फाइबर गांव-गांव में फैला रहे हैं। डिजिटल इंडिया का सपना गांवों से होकर गुजरेगा। 4 लाख कॉमन सर्विस सेंटर गांवों में हैं। गांव के क्षेत्र में 4 लाख डिजिटल आंत्रप्रेन्योर का तैयार होना गर्व की बात है। सेमीकंडक्टर, 5 जी की ओर हम कदम बढ़ा रहे हैं, ये सिर्फ आधुनिकता की पहचान नहीं है। शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और कृषि जीवन में आमूल-चूल क्रांति डिजिटल से आने वाली है। एक नया विश्व तैयार हो रहा है। भारत उसे आगे बढ़ाने के लिए तैयार है। यह दशक टेक्नॉलजी से जुड़ा है। आईटी के क्षेत्र में दुनिया भारत का लोहा मानती है।
स्पेस मिशन की बात हो, हमारा डीप ओशन मिशन की बात हो, समंदर की गहराई में जाना हो या आसमान को छूना हो हम इन क्षेत्रों में आगे बढ़ रहे हैं। हमारे छोटे किसान, उद्यमी, लघु उद्योग, सूक्ष्म उद्योग, कुटिर उद्योग, रेहड़ी-पटरी पर काम करने वाले लोग, समाज के इस सबसे बड़े तबके का सामर्थ्यवान होना भारत के सामर्थ्यवान होने के लिए जरूरी है।
नारीशक्ति को सलाम
हमारे पास 75 साल का अनुभव है। हमने कई सारी सिद्धियां भी प्राप्त की है। नए सपने भी संजोए हैं, संकल्प भी लिए हैं। लेकिन अमृत काल के लिए हमारे मानव संसाधन, प्राकृतिक संपदा का ऑप्टिमम आउटपुट कैसे हो, इस लक्ष्य को लेकर चलना है। मैं पिछले कुछ सालों के अनुभव से कह सकता हूं। आज अदालत के क्षेत्र को ही देखिए वकील के तौर पर नारीशक्ति किस ताकत से काम कर रही है, गांवों में पंचायत के क्षेत्र में देखिए, आज ज्ञान का क्षेत्र देख लीजिए, विज्ञान का क्षेत्र देख लीजिए, हमारी नारी शक्ति सिरमौर नजर आती है। हम पुलिस में देखें, हमारी नारी शक्ति लोगों की सुरक्षा की जिम्मेदारी उठा रही है। हम जीवन के हर क्षेत्र में देखें, खेल-कूद का मैदान देखें या युद्ध की भूमि देखें, भारत की नारी शक्ति एक नए सामर्थ्य के साथ आगे आ रही है। आने-वाले 25 साल में ये योगदान और ज्यादा बढ़ेगा। हम इस पर जितना ध्यान देंगे, हम जितना ज्यादा अवसर हमारी बेटियों को देंगे, आप देखना वह देश को एक नई ऊंचाई पर ले जाएगी।
कोऑपरेटिव फेडरलिज्म के साथ-साथ कॉम्पटिटिव फेडरलिज्म की जरूरत
मैं आज भारत के संविधान के निर्माताओं को भी धन्यवाद देना चाहता हूं। उन्होंने हमें जो फेडरल स्ट्रक्चर दिया है उसकी भावनाओं का आदर करते हुए हम अगर कंधे से कंधा मिलाकर चलेंगे तो सपने साकार होंगे ही होंगे। कार्यक्रम भिन्न हो सकते हैं, कार्यशैली भिन्न हो सकती है लेकिन संकल्प भिन्न नहीं हो सकते। राष्ट्र के लिए सपने भिन्न नहीं हो सकते। मुझे याद है जब मैं गुजरात का सीएम था तब केंद्र में हमारे विचार की सरकार नहीं थी। गुजरात में मैं एक ही मंत्र लेकर चलता था कि भारत के विकास के लिए गुजरात का विकास। हमारे देश के कई राज्य हैं जो देश को आगे बढ़ाने में बहुत भूमिका निभाई है। ये हमारे फेडरलिज्म को ताकत देती है। हमें कोऑपरेटिव फेडरलिज्म के साथ-साथ कॉम्पटिटिव फेडरलिरज्म की जरूरत है। हमें स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का वातावरण चाहिए।
भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग में जनता का मांगा सहयोग
मेरे प्यारे देशवासियों इस 25 साल के अमृत काल के लिए चर्चा करते हैं तो हम जानते हैं कि चुनौतियां अनेक हैं, मुसीबतें हैं, मर्यादाएं हैं। हम इसे कम नहीं आंक सकते। लेकिन 2 विषयों पर चर्चा जरूरी है और मैं मानता हूं कि हमारी इन सभी चुनौतियों, विकृतियों, बीमारियों के कारण इस 25 साल के अमृतकाल में अगर हम समय रहते नहीं चेते तो ये विकराल रूप ले सकते हैं। एक है- भ्रष्टाचार और दूसरा है भाई-भतीजावाद, परिवारवाद। लोग गरीबी से जूझ रहे हैं। एक तरफ वे लोग हैं जिनके पास रहने के लिए जगह नहीं है, दूसरी तरफ वे लोग हैं जिनको अपना चोरी किया हुआ माल रखने के लिए जगह नहीं है। ये स्थिति अच्छी नहीं है। इसलिए हमें भ्रष्टाचार के खिलाफ पूरी ताकत से लड़ना होगा। पिछले 8 सालों में डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के जरिए, आधार, मोबाइल इन सारे आधुनिक व्यवस्थाओं का उपयोग करते हुए 2 लाख करोड़ रुपये जो गलत हाथों में जाते थे, उन्हें लोगों की भलाई में लगाने में हम कामयाब हुए हैं। जो लोग पिछली सरकारों में बैंकों को लूट-लूटकर भाग गए, उनकी संपत्तियों को जब्त करके वापस लाने की कोशिश कर रहे हैं। कई को जेलों में जीने के लिए मजबूर करके रखा है। हमारी कोशिश है कि जिन्होंने देश को लूटा है, उन्हें लौटाना पड़े, ये स्थिति हम पैदा कर रहे हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ हम एक निर्णायक कालखंड में प्रवेश कर रहे हैं। मैं लाल किले की प्राचीर से ये बहुत जिम्मेदारी के साथ कह रहा हूं। भ्रष्टाचार दीमक की तरह देश को खोखला कर रहा है, मुझे इसके खिलाफ लड़ाई लड़नी है। मैं आपका सहयोग मांगने आया हूं ताकि मैं इस लड़ाई को जीत पाऊं।
ये चिंता का विषय है कि आज देश में भ्रष्टाचार के प्रति नफरत तो दिखती है, व्यक्त भी लेकिन कभी-कभी भ्रष्टाचारियों के प्रति उदारता बरती जाती है। किसी भी देश में ये शोभा नहीं देगा। कई लोग तो इतनी बेशर्मी तक चले जाते हैं कि कोर्ट में सजा हो चुकी हो, भ्रष्टाचारी सिद्ध हो चुका हो, जेल जाना तय हो चुका हो, जेल गुजार रहे हों, इसके बाद भी उनका महिमामंडन करने में लगे रहते हैं। उनकी प्रतिष्ठा बनाने में लगे रहते हैं। जबतक समाज में गंदगी के प्रति नफरत पैदा नहीं होती है, तबतक स्वच्छता की चेतना नहीं जगती। जबतक भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी के प्रति नफरत का भाव पैदा नहीं होगा, तबतक भ्रष्टाचार खत्म नहीं होगा।
परिवारवाद और भाई-भतीजावाद पर तीखा हमला
जब मैं भाई-भतीजावाद और परिवारवाद की बात करता हूं तो लोगों को लगता है कि मैं सिर्फ राजनीतिक क्षेत्र की बात कर रहा हूं। जी नहीं। दुर्भाग्य से राजनीतिक क्षेत्र की इस बुराई ने हिंदुस्तान की हर संस्थाओं में परिवारवाद को पोषित कर दिया है। परिवारवाद हमारी अनेक संस्थाओं को अपने में लपेटे हुए है और इसके कारण मेरे देश के टैलेंट को नुकसान होता है, सामर्थ्य को नुकसान होता है। जिनके पास अवसर की संभावनाएं हैं वो परिवारवाद, भाई-भतीजावाद के कारण बाहर रह जाते हैं। भ्रष्टाचार का एक कारण ये भी बन जाता है। इस परिवारवाद से हमें हर संस्थाओं में एक नफरत पैदा करनी होगी, जागरूकता पैदा करनी होगी तभी हम इन संस्थाओं को बचा पाएंगे।
राजनीति में भी परिवारवाद ने देश के सामर्थ्य के साथ सबसे ज्यादा अन्याय किया है। परिवारवादी राजनीति परिवार के भलाई के लिए होती है, उसको देश की भलाई के साथ कुछ लेना-देना नहीं होता। इसलिए मैं देशवासियों को खुले मन से कहना चाहता हूं कि हिंदुस्तान की राजनीति, संस्थाओं के शुद्धीकरण के लिए भी हमें देश को इस परिवारवादी मानसिकता से मुक्ति दिलाकर योग्यता के आधार पर देश को आगे ले जाने की ओर बढ़ना होगा। यह अनिवार्यता है। वरना हर किसी का मन कुंठित रहता है कि मैं इसके लिए योग्य था लेकिन वहां मेरा कोई चाचा-नाना-पिता-नानी नहीं था तो मैं नहीं पा पाया। यह मनःस्थिति किसी भी देश के लिए अच्छी नहीं है। मैं देश के नौजवानों का परिवारवादी राजनीति के खिलाफ लड़ाई में साथ चाहता हूं। हमने देखा पिछले दिनों खेलों में। ऐसा तो नहीं था कि पहले देश में खेल प्रतिभाएं नहीं थी। लेकिन सिलेक्शन भाई-भतीजावाद के आधार पर होता था। जब पारदर्शिता आई, सामर्थ्य का सम्मान होने लगा तो देखिए आज दुनिया में खेल के मैदान में तिरंगा लहराता है।
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