छह सालों में 15837 हेक्टेयर वन भूमि को नुकसान

सार

आंकड़ों के मुताबिक, पिछले छह वर्ष में वनाग्नि की घटनाओं में छह लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 32 लोग घायल हो चुके हैं। इस फायर सीजन में केवल एक व्यक्ति की मृत्यु हुई और छह लोग घायल हुए हैं।

विस्तार

उत्तराखंड में छह सालों में 15837 हेक्टेयर जंगल को आग से भारी क्षति पहुंची। इस अवधि में पूरे प्रदेश में 9918 वनाग्नि की घटनाएं हुईं। पिछले वर्ष राज्य में वनों को सबसे अधिक नुकसान हुआ। वनाग्नि 2780 घटनाओं में 3927 हेक्टेयर क्षेत्र दावानल की भेंट चढ़ गया।उत्तराखंड के वनों पर गर्मियां बहुत भारी पड़ती हैं। बढ़ती तपिश के बीच राज्य के वन क्षेत्र को आग की लपटे घेर लेती हैं। वनाग्नि की ये घटनाएं ऐसे स्थानों पर होती हैं, जहां तक पहुंचना आसान नहीं होता। वन विभाग से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक, पिछले पांच साल में आग की घटनाओं से वनों को यदि सबसे अधिक नुकसान 2021 में हुआ तो 2020 में दावानल की सबसे कम घटनाएं हुईं।ये कोरोनाकाल का समय था, जब पर्यावरण में मानव जनित ऊर्जा और तपिश में अप्रत्याशित कमी का जंगलों पर सकारात्मक प्रभाव दिखा और वनों में आग की कम घटनाएं हुईं। आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2020 में वनाग्नि की केवल 135 घटनाएं हुईं और केवल 172.69 हेक्टेयर जंगल को नुकसान पहुंचा। फायर सीजन में वनाग्नि राज्य सरकार और पर्यावरण कार्यकर्ताओं की चिंता का सबब बनी है।

वनाग्नि की घटनाओं में छह लोगों की हो चुकी मौत

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और वन मंत्री को अधिकारियों की बैठक बुलाकर अधिकारियों और कर्मचारियों को वनाग्नि की घटनाएं रोकने के आदेश देने पड़ रहे हैं। 15 फरवरी से शुरू हुए फायर सीजन से तीन मई तक प्रदेश में 1890 वनाग्नि की घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें कुल 3031.04 हेक्टेयर जंगल को नुकसान हो चुका है। इसमें 1329 हेक्टेयर आरक्षित वन भी शामिल है। कुल 79 लाख से अधिक की राजस्व की क्षति का आंकलन लगाया गया है। आंकड़ों के मुताबिक, पिछले छह वर्ष में वनाग्नि की घटनाओं में छह लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 32 लोग घायल हो चुके हैं। इस फायर सीजन में केवल एक व्यक्ति की मौत हुई और छह लोग घायल हुए हैं।

जन भागीदारी से आग बुझाने पर जोर

जंगल की आग बुझाने के लिए प्रदेश सरकार का जोर संसाधनों को बढ़ाने के साथ जनता का सहयोग लेने पर भी है। इसके लिए सरकार ने हर ग्रामसभा स्तर पर वनाग्नि नियंत्रण प्रबंधन समिति के गठन का फैसला किया है। साथ ही वन पंचायतों को मनरेगा से जोड़ने की रणनीति बनाई है।
पिछले वर्ष की तुलना में अप्रैल माह तक वनाग्नि की कम घटनाएं हुई हैं। यह वन विभाग की पूर्व नियोजित कार्य योजना का नतीजा है। हम ग्रामीणों की मदद से वनाग्नि की घटनाओं को रोकने की प्रभावी कार्ययोजना तैयार कर रहे हैं। – सुबोध उनियाल, वन मंत्री, उत्तराखंड

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